Saturday, January 29, 2011

VIEWS ON STAMPEDE AT SABRIMALA TEMPLE



कब तक हम भीड़ में पिसते रहेंगे - मरते रहेंगे ?

         अभी कुछ ही दिनों पहले नए दशक के पहले ही त्यौहार यानि मकर संक्रांति पर सबरीमाला मंदिर के पास हादसे में 100 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और कई घायल हुए थे. जाँच से पता चला की ज्यादातर मौतें भगदड़ के कारण हुई थी.

        सबरीमाला मंदिर हमारे देश के सबसे अमीर देवस्थानो में से एक हैं. यहाँ हर साल लगभग 4  करोड़ श्रद्धालु दर्शन लाभ पाते हैं, फिर भी वहां ऐसे हादसों को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय उपलब्ध नहीं थे. यही हाल हमारे देश के ज्यादातर मंदिरों, देवस्थानों, दरगाहों, धार्मिक मेलों व् पर्यटन स्थलों आदि का है.
        
        हर साल हमारे देश के किसी न किसी कोने में कितने ही निर्दोष लोग भगदड़ के शिकार होकर मरते हैं. सरकार मरने वालों के आश्रितों को आर्थिक मदद देकर पल्ला झाड लेती है. हम यह कहते हुए अख़बार समेट कर रख देते हैं की "यह तो होना ही था - आजकल कितनी ज्यादा भीड़ होने लग गयी हैं - सबको जल्दी जो हैं" आदि.

        जनता सोचती है - कोई बात नहीं सरकार अब की बार कुछ करेगी. सरकार सोचती है - अब देवस्थानों को चलने वाली संस्थाएं कुछ करेंगी और वह संस्थाएं सोचती हैं - अब हम अगले साल जरुर कुछ न कुछ करेंगे. चाहे कुम्भ के मेले में जायें, जगन्नाथ पूरी जायें, ख्वाजा साहब के उर्स में जायें या तिरुपति बालाजी के जायें हम भीड़ में कहीं न कहीं भगदड़ के विचार भर से ही डर व् सहम जाते हैं. फिर भी हम कैसे भी एक-दुसरे को धक्का देकर या गच्चा देकर जल्दी से जल्दी भीड़ से निकलना चाहते हैं. 

        भगदड़ मचने का कारण कुछ भी हो सकता है जैसे की भीड़ का जल्दबाजी करना, अफवाह फेलना या धक्का-मुक्की होना.

         अगर हम ज्यादातर भगदड़ के हादसों पर नज़र डालेंगे तोह पायेंगे की उन्हें भीड़ नियंत्रण की कई आसान किन्तु सही तकनीकों का इस्तेमाल कर रोका जा सकता था. इस 'रोका जा सकता था' को ' रोका जा सकता है' में बदलने के लिए जरूरी है की हमें यानी की 'गण' को व् साथ ही 'तंत्र' को भीड़ नियंत्रण की सही तकनीकों का इजाद, इस्तेमाल व् प्रचार करना होगा.

        सरकार को यह सुनिशचित करना होगा की भगदड़ को रोकने और उसके प्रभाव को कम से कम करने के लिए - भीड़ नियंत्रण की सही तकनीकों का इजाद हो व् सभी जरूरी जगह उचित इस्तेमाल हो.

        आयोजनकर्ताओं, संस्थानों व् देवस्थानों को चलाने वाले बोर्डों व् ट्रस्टों को सुनिशचित करना होगा की वे अपने कार्यक्रमों व् स्थानों में भीड़ नियंत्रण की 'सही तकनीकों' का 'सही इस्तेमाल' करें. जैसे की भीड़ नियंत्रण के लिए अलग से कुशल कार्यकर्ताओं की फ़ौज बनाएं, पर्याप्त मात्र में व् सही तरीके से बैरियर्स व् बेरिकेड्स लगायें, भीड़ पर नज़र रखने के लिए कैमरें या ऊंचे स्थानों पर कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल करें, लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल कर भीड़ को निर्देश दें व् नियंत्रण करें. 

        जनता यानी हमे चाहिए की हम भीड़ में जल्दबाजी न करें, एक-दुसरे के साथ धक्का मुक्की न करें, अफवाहों पर ध्यान न दें, एकदम से न घबराएं, किसी भी अप्रिय घटना होने पर एकदम न भागें और भीड़ में अपने गुस्से का तापमान न बढने दें.

        आप और हम यानी की हम सब भी भीड़ का हिस्सा हैं, इसलिए भगदड़ से बचने के लिए व् भीड़ नियंत्रण के लिए हमें भी जरूरी अहतियात बरतने होंगे.

        इसी आशा की साथ अंत करता हूँ की अब एक शुरुआत होगी - शुभारम्भ होगा ताकि - 
                     
"हमे भीड़ में डर न मिले, मौत न मिले l 
मिले तो सिर्फ ख़ुशी मिले, उल्लास मिले ll"         
     

2 comments:

  1. Anonymous5/4/11

    Saket, u have thrown a light on a very typical an concerning issue.keep it up.
    Krishna

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  2. Anonymous12/4/11

    Saketji, why don't our politicians think about this and like you.Good.
    yours,
    Kishore Agarwal

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