Friday, December 2, 2011

हम किस गली जा रहें हैं ?

                     अभी गत 24 नवम्बर को एक शख्स ने केन्द्रीय मंत्री व वरिष्ट नेता  शरद पंवार (Sharad Pawar) को सरे-आम थप्पड़ मार दिया था. विगत कुछ एक-दो सालो में थप्पड़ मरना, जूते फेकना, चप्पल मरना भारतीय राजनीती में आम बात होती जा रही है. इससे पहले भी इस प्रकार की कई हिंसक व् निंदनीय घटनाये कुछ प्रमुख लोगो के साथ घटित हो चुकी है जैसे एक सभा के दौरान हमारे देश के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के मंच पर जूता फेंका गया था, हमारे देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री व् भाजपा के वरिष्ट नेता लालकृष्ण अडवाणी  पर भी एक सभा के दौरान चप्पल उछाली गयी थी, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उम्र अब्दुल्ला (Omar Abdullah) पर राष्ट्रीय ध्वज को फेहराते  वक़्त जूता उछाला गया था, हमारे देश के गृहमंत्री पी. चिदमबरम (P. Chidambaram) पर एक पत्रकार जरनैल सिंह ने प्रेस वार्ता के दौरान जूता उछाल दिया था, साथ ही कांग्रेस के प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी (Janardan Dwivedi) पर भी एक प्रेस वार्ता के दौरान एक व्यक्ति ने हुम्ला कर दिया था. अभी कुछ ही दिनों पहले टीम अन्ना के सदस्य व् सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ट वकील प्रशांत भूषन (Prashant Bhushan) से सुप्रीम कोर्ट परिसर में ही कुछ युवको ने मारपीट की थी. साथ ही टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविन्द केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पर भी लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान हमला हुआ था. भ्रष्टाचार के आरोप में तिहाड़ जेल में बंद सुरेश कलमाड़ी व पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुखराम (Sukhram) पर भी कोर्ट में पेशी पर जाते हुए हमला हो चुके हैं. अरुशी हथ्याकांड की सुनवाई के दौरान तो अरुशी के पिता पर एक शख्स ने धार-दार हथियार से हमला करके उन्हें लहूलुहान कर दिया था. इन सब घटनाओं को सुनकर, पढ़कर व देखकर एक युवा होने के नाते मेरे मन में बस यही सवाल उठते हैं की - " हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है?" क्या अहिंसा के पुजारी गांधीजी के सपनो के भारत का युवा ऐसा ही है? क्या दुनिया के सबसे बड़े लोक तंत्र में जनता का आवाज़ उठाने का यह तरीका सही है?  क्या हमारा शांति-प्रिय, सभ्य व शालीन समाज हमें यही शिक्षा देता है? क्या अपना विरोध प्रकट करने का, अपने गुस्सा जाहिर करने का अब बस यही तरीका बचा है?  
Prashant Bhushan Beaten up in his 
Chamber at Supreme Court Campus
Prashant Bhushan Beaten up by a Man
in his Chamber at Supreme Court Campus
 
Sharad Pawar Slapped by 
Harwinder Singh in Delhi

Man trying to Hurl Shoe at 
Congress Leader Janardan Dwivedi
                 









                         एक और सवाल जो इन घटनाओ के मद्देनज़र मेरे दिमाग में उठता है की - कहीं यह सब कृत्य ओच्छि राजनीती व पब्लिसिटी स्टंट भर तोह नहीं है. किसी पर भी जूता चप्पल उछालो या किसी को भी थप्पड़ रसीद कर दो और रातो-रात फेमस हो जाओ. हो न हो मगर कहीं न कहीं इन हमलो के पीछे यह भी एक बड़ा कारण रह सकता है.

                 एक बड़ी ही मशहूर अंग्रेजी की कहावत है की "लोकतंत्र में BULLET से ज्यादा ताकत BALLOT में होती है." यानि की "लोकतंत्र का हथियार BULLET नहीं BALLOT होता है." अगर आपको किसी राजनेता का काम पसंद नहीं आ रहा, आप महंगाई व भ्रस्ताचार से त्रस्त हैं, रोज-रोज के घोटालों से परेशान हैं तो इसका मतलब यह नहीं है की हाथ में जूते - चप्पल उठा लेने या किसी को थप्पड़ जड़ देने से सब सही हो जाएगा. "क्या शरद पंवार को थप्पड़ मरने से महंगाई कम हो जाएगी?" नहीं ! लोकतंत्र में जनता का सबसे बड़ा हथियार है - उसका मत, उसका बहुमूल्य वोट. इतिहास गवाह है की जनता ने अपने वोट का इस्तेमाल कर बड़ी-बड़ी सरकारें बदल दी - तो फिर यह हिंसा क्योँ? यदि आपको लोकतंत्र में अपनी बात मनवानी है तो आपके पास आपका कीमती वोट है. उस एक वोट के लिए बड़ी-बड़ी सरकारें आपके दरवाजे पर आकर हाथ जोड़ती है, तो फी हिंसात्मक आचरण क्यों ?

                 शांति व अहिंसा के पुजारी हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी ने विरोध दर्ज करने के नायब फोर्मुले हमें सिखाये हैं जैसे की अनशन, सत्याग्रह व शांतिपूर्ण मार्च. गांधीजी ने तो इन नायब फोर्मुलो का प्रयोग कर अंग्रेजो तक को भगा दिया था.  हमारे देश को 200 वर्षों की गुलामी से आजादी दिला दी थी. जब हमारे पास यह नायाब, असरदार, कारगर व सफल फोर्मुले हैं तो फिर चप्पल-जूते या हाथ-पाँव क्यों उठाए ?

                 इस तरह की शर्मनाक घटनाओं की पूर्णावर्ती रोकने के लिए सिस्टम के साथ-साथ हमें भी पुरजोर कदम उठाने होंगे. इस तरह की घटनाओ में लिप्त लोगों का सामाजिक बहिष्कार करना होगा. उन्हें एहसास दिलाना होगा की "भारतवर्ष का शांतिप्रिय, शालीन व शिष्ट समाज इन घटनाओं के सख्त खिलाफ है."  साथ ही यदि इन लोगों का मकसद सिर्फ प्रसिद्धि पाना भर है तो ऐसी घटनाओं पर लगाम कसने के लिए मिडिया को एकजुट होकर  ऐसी घटनाओं को ज्यादा महत्व देना कम करना होगा. हमारे सिस्टम व कानून को और मजबूत  कर ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को सक्थ सजा देनी होगी. तभी जाकर इन शर्मनाक, अशोभनीय व अलोकतांत्रिक घटनाओ पर लगाम लग पाएगी.

2 comments:

  1. Anonymous10/12/11

    Good work
    What is this all happening in our India

    From Bobby Sukhwal NY USA

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  2. Anonymous14/12/11

    i agree with your views.good work saket ji.

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