संतप्रवर श्री दादू दयाल जी महाराज की जयंती पर
विशेष
"धन्य धन्य गुरु
दादूरामा, भक्तन हितकारक अभिरामा"
भारतवर्ष
के गुजरात राज्य में अहमदाबाद के निवासी श्री लोधीरम नागर एक धनी व यशस्वी व्यापारी थे । अधेड़ आयु के उपरांत भी उनके पुत्र नहीं था जिसकी उन्हें सदा लालसा रहती थी । एक दिन उन्हें एक सिद्ध संत के दर्शन हुए और उन्होंने अपनी हार्दिक व्यथा उन संत को कह सुनाई । संत ने शरणागत जानकर लोधीरम को पुत्र रत्न की प्राप्ति का वरदान दिया और कहा ''साबरमती नदी में तैरते कमल पत्र पर शयन
करते बालक को अपने घर ले आना, वही तुम्हारा पुत्र होगा।'' पुत्र
प्राप्ति की कामना लेकर श्री लोधीरम ब्राहमण साबरमती नदी के तट पर गए जहाँ उन्हें पानी पर तैरते कमल पर लेटा हुआ बालक प्राप्त हुआ । इस प्रकार शुभमिति फाल्गुन शुक्ल अष्टमी गुरुवार के दिन विक्रम संवत 1601 में संत शिरोमणि सदगुरु श्री दादू दयाल जी महाराज का 'अवतार' हुआ।
अपनी
प्रिय से प्रिय वस्तु परोपकार के लिए तुरंत दे देने के स्वाभाव के कारण उनका नाम 'दादू' रखा
गया । आप दया दीनता व करुणा के खजाने थे, क्षमा शील और संतोष
के कारण आप 'दयाल' अतार्थ
"दादू दयाल" कहलाये । विक्रम सं. 1620 में सब प्रकार से घर को छोड़कर आप केवल प्रभु चिंतन में ही लीन हो गए । अहमदाबाद से प्रस्थान कर भ्रमण करते हुए राजस्थान की आबू पर्वतमाला, तीर्थराज पुष्कर से होते
हुए करडाला धाम (जिला जयपुर) पधारे
और पूरे 6 वर्षों तक लगातार
प्रभु की साधना की। दादू जी महाराज की कठोर साधना से इन्द्र को आशंका हुई की कहीं इन्द्रासन छीनने के लिए तो वे तपस्या नहीं कर रहे , इसीलिए इंद्र ने उनकी
साधना में विघ्न डालने के लिए अप्सरा रूप में माया को भेजा । जिसने साधना में बाधा डालने के लिए अनेक उपाय किये मगर उन महान संत ने 'माया में'
व 'अपने में' एकात्म दृष्टि से बहन
और भाई का सनातन प्रतिपादित कर, उसके प्रेमचक्र को एक
पवित्र सूत्र से बाँध कर शांत कर दिया ।
Saint Shri Dadu Dayal Ji Maharaj |
संत
दादू जी विक्रम सं. 1625 में सांभर पधारे यहाँ उन्होंने मानव - मानव के भेद
को दूर करने वाले, सच्चे मार्ग का उपदेश
दिया। तत्पश्चात दादू जी महाराज आमेर पधारे तो वहां की सारी प्रजा और राजा उनके भक्त हो गए । उसके बाद वे फतेहपुर सीकरी भी गए जहाँ पर बादशाह अकबर ने पूर्ण भक्ति व भावना से दादू जी के दर्शन कर उनके सत्संग व उपदेश ग्रहण करने की इच्छा प्रकट की तथा लगातार 40 दिनों तक दादूजी
से सत्संग करते हुए उपदेश ग्रहण किया। "दादूजी के सत्संग प्रभावित होकर अकबर ने अपने समस्त साम्राज्य में गौ-हत्या बंदी का फरमान
लागू कर दिया ।"
उसके
बाद दादूजी महाराज नरेना (जिला जयपुर) पधारे
और उन्होंने इस नगर को साधना, विश्राम तथा धाम के लिए
चुना और यहाँ एक खेजडे के वृक्ष के नीचे विराजमान होकर लम्बे समय तक तपस्या की और आज भी "खेजडा जी" के वृक्ष के दर्शन मात्र से 'तीनो प्रकार के ताप' नष्ट होते हैं । यहीं पर उन्होंने ब्रह्मधाम "दादूद्वारा" की स्थापना की जिसके दर्शन मात्र से आज भी सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है ।
तत्पश्चात
श्री दादूजी ने सभी संत शिष्यों को अपने 'ब्रह्मलीन' होने
का समय बताया। ब्रह्मलीन होने के लिए निर्धारित दिन (जयेष्ट कृष्ण अष्टमी सम्वत 1660 ) के शुभ
समय में श्री दादूजी ने एकांत में ध्यानमग्न होते हुए "सत्यराम" शब्द का उच्चारण कर इस संसार से ब्रहम्लोक को प्रस्थान किया।
उनके
उपदेशों को उनके शिष्य रज्जब जी ने "दादू अनुभव वाणी" के रूप में समाहित किया, जिसमे लगभग 5000 दोहे
शामिल हैं।
श्री
दादू दयाल जी महाराज के द्वारा स्थापित "दादू पंथ" व "दादू पीठ" आज भी मानव मात्र की सेवा में निर्विघ्न लीन है। वर्तमान में दादूधाम के पीठाधीश्वर के रूप में आचार्य महंत श्री गोपालदास जी महाराज विराजमान हैं। वर्तमान में भी प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल अष्टमी पर नरेना धाम में भव्य मेले का आयोजन होता है तथा इस अवसर पर एक माह के लिए भारत सरकार के आदेश अनुसार वहां से गुजरने वाली प्रत्येक रेलगाड़ी का नरेना स्टेशन पर ठहराव रहता है।
संतप्रवर
श्री दादू
दयालजी महाराज
को 'निर्गुण' संतो जैसे की कबीर
व गुरु नानक के समकक्ष माना जाता है तथा उनके उपदेश व दोहे आज भी समाज को सही राह दिखाते आ रहे हैं।
"सागर-सम
दादू चरित्र,
वार पार
नहीं अंत
।
पद्य-गद्य
गागर भरी,
धारहिं भक्त
सुसंत ।।"
- साकेत गर्ग
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Jai Shri Dadu Dayal Ji🙏🙏
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