Thursday, October 17, 2013

Views On Ratangarh (MP) Devi Temple Stampede

आखिर कब तक हम भगदड़ में पिसते रहेंगे?

पिछले रविवार यानि नवरात्रि पर्व के अन्तिम दिन को मध्यप्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ स्थित देवी मन्दिर में भगदड (Stampede) मचने से 100 से ज्यादा श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई जबकि 200 से अधिक श्रद्धालु घायल हो गए। इस दुखद घटना से पूरे देश में शोक की लहर दौड पडी और त्यौहार व हर्षोल्लास का माहौल सदमे व अघात में तब्दील हो गया। हर वर्ष नवरात्रि के पावन पर्व पर बडी संख्या में श्रद्धालु रतनगढ माता मन्दिर में दर्शन करने पहुंचते है। फिर भी वहां ऐसे हादसों को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय उपलब्ध नहीं थे और यही हाल हमारे देश के लगभग ज्यादातर मन्दिरों, देवस्थानों, दरगाहों, धार्मिक मेलों व पर्यटन स्थलों आदि का है।
हर साल हमारे देश के किसी न किसी कोने में कितने ही निर्दोष व मासूम लोग भगदड के शिकार होकर मर जाते है। सरकार मरने वालो के आश्रितों को आर्थिक मदद व मुआवजा देकर खानपूर्ति कर लेती है तथा न्यायिक जांच के आदेश देकर अपनी जिम्मेदारी व कमजोरी से पल्ला झाड लेती है। आप और हम यह कहते हुए अखबार समेट कर रख देते है कि "यह तो होना ही था आजकल कितनी ज्यादा  भीड़ होने लग गई है, सबको जल्दी है"।
हर बार जनता यही सोचती है कि "अब की बार सरकार जरूर कुछ करेगी"। सरकार सोचती है कि "अब देवस्थानों व मन्दिरों को सम्भालने व चलाने वाली संस्थाए जरूर कुछ करेगी" और संस्थाऐ सोचती है "इस बारे में सरकार कोई सुझाव देकर अमल करेगी और आने वाली जनता ज्यादा सावचेत व जागरूक रहेगी"। आप और हम चाहें कुम्भ के मेले में जाएँ, जगन्नाथपुरी जायें, ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में जाये या तिरूपति बालाजी के दर्शन को जाये, भीड में कहीं न कहीं भगदड के विचार भर से ही हम डर व सहम जाते है। फिर भी हम कैसे भी एक-दूसरे को धक्का देकर या गच्चा देकर जल्दी से जल्दी भीड़ से निकलना चाहते है।
इन स्थानों पर व ऐसे आयोजनों में भगदड मचने का कारण कुछ भी हो सकता है जैसे कि भीड का जल्दबाजी करना बेकाबू होना, अफवाह फैलाना या धक्का-मुक्की होना इत्यादि। अगर हम ज्यादातर भगदड के हादसों पर नजर डालेगे तो पायेंगे की इन दुखद हादसों को "भीड नियंत्रण" (Crowd Management) की कई आसान परन्तु सहीं तकनीकों का इस्तेमाल करके रोका जा सकता था। इस 'रोका जा सकता था'  को 'रोका जा सकता है', में बदलने के लिए व ऐसे दुखद हादसों की पुनारावृति को रोकने के लिए जरुरी है कि हमें यानि की "गण" व साथ ही "तंत्र" को भीड नियंत्रण की सही तकनीकों (Crowd Management Techniques) का इस्तेमाल करना होगा। 
        सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा की भगदड को रोकने और उसके प्रभाव को कम से कम करने के लिए भीड नियंत्रण की सही तकनीकों का इजाद, इस्तेमाल व प्रचार प्रसार हो। आयोजनकर्ताओं, संस्थानों व देवस्थानों को चलाने वाले बोर्डो व ट्रस्टों को सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने कार्यक्रमों व स्थानों में भीड नियंत्रण की सही तकनीकों का उचित इस्तेमाल करें। जैसे कि भीड नियंत्रण के लिए अलग से कुशल कार्यकत्र्ताओं की फौज बनाऐ, पर्याप्त मात्रा में व सही तरीके से बैरियर्स व बैरिकेड्स लगायें, भीड पर नजर रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में कैमरे व ऊंचे स्थानों पर कार्यकत्र्ताओं का इस्तेमाल करें, लाऊड स्पीकरों का इस्तेमाल कर भीड़ को जरूरी निर्देश दें व नियंत्रित करे और जनता को यानि कि हमें और आप को चाहिए की हम भीड में जल्दबाजी न करें, एक-दूसरे के साथ धक्का-मुक्की न करें, किसी भी अप्रीय घटना होने पर एकदम न भागें और भीड-भीड में अपने गुस्से का तापमान न बढने दें।
आप और हम यानि कि हम सब भी भीड़ का हिस्सा है। इसलिए भगदड जैसी दुखद घटना से बचने के लिए व ऐसे दुखद हादसों कि पुर्नावृति रोकने के लिए हमें भी सरकार व संस्थाओं के साथ मिलकर जरूरी अहतियात बरतने होंगे। 
        इसी आशा के साथ अंत करता हूं कि अब एक नई शुरूआत होगी भगदड मुक्त भारत कि ताकि -
"हमें भीड़ में डर न मिले, मौत न मिले।
मिले तो सिर्फ खुशी मिले, उल्लास मिले।"
 साकेत गर्ग